साहित्य सृजन मंच, बिसवाँ द्वारा आयोजित काव्य समागम
बिसवाँ, सीतापुर |
साहित्य सृजन मंच, बिसवाँ द्वारा मिस्टरगंज मे एक काव्यगोष्ठी का आयोजन किया गया जिसकी अध्यक्षता देश के सुप्रसिद्ध ओज कवि रजनीश मिश्र ने की और विशिष्ट अतिथि द्वय के रूप में सीतापुर से कार्तिकेय शुक्ल व भगवती गुप्त उपस्थित रहे। साहित्यकार संदीप सरस ने संचालन की कमान सम्हाली।
सीतापुर से पधारे प्रसिद्ध ओज कवि रजनीश मिश्र के सृजन की तेजस्विता एक मुक्तक से मुखरित हो उठी- दमकती भाल पर बिन्दी छटा अनुपम है आली है। खनकती चूडियां हाथो की महिमा भी निराली है।कभी प्रेयसि कभी वात्सल्य कीप्रतिमूर्ति लगती है,कभी झांसी की रानी है कभी दुर्गा है काली है ।
सीतापुर से श्रृंगार के सुकुमार कवि कार्तिकेय शुक्ल की रचना पर्यावरण की चेतना को समर्पित रही- हमने जंगल काटकर घर बनाया।
साहित्यकार संदीप सरस ने आत्मीयता को रेखांकित करते हुए चित्र खींचा- अंक से भींच रोये मिलन हो गया। भाव से भाव का आचमन हो गया। एक भाई खड़ाऊँ लगा पूजने, जानकी राम का वन-गमन हो गया।
अवधी लोकगीतकार मनोज शुकदेव ने रचना से मंत्रमुग्ध कर दिया- द्वारे ना अउती मोरे देखुआ बड़े दद्दू कहूं जो कुंआर न होउती। रंग गुलाबी न देति मजा यदि भउजी के ग्वाड जो ग्वार न होउती।जनपद फतेहपुर से सशक्त रचनाकार डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर' की रचनाधर्मिता शानदार रही- अन्न उसी से, पानी उससे, उससे वेतन-भत्ता। चाहे महल-क़िले हों चाहे, मधुमक्खी का छत्ता। उसकी इच्छा नहीं अगर तो, हिलता कभी न पत्ता। जीवन-मौत उसी के हाथों, एक वही है सत्ता।
कवि आनंद खत्री ने कहा-पूज्य महाराणा प्रताप को नमन करते हुए कहा- भारत माता का सपूत अति वीर बड़ा मरदाना। जन्मभूमि की रक्षा करने का प्रण मन में ठाना।घास की रोटी खायी थी पर स्वाभिमान न छोडा, दुश्मन जिससे रहा काँपता था प्रताप महाराणा।कलमकार सतीश कौशिक ने कहा -भारत के भावी पट के, हे चित्रकार तुम आओ। शिक्षा किरण उजाली लाने, तुम दीप स्वयं बन जाओ।
युवा कवि नैमिष सिंह ने प्रभावी रूप से कहा- हे भारत के वीर पूत बलिदान न खाली जाएगा। जब याद तुम्हारी आएगी जग सारा अश्रु बहायेगा।
कार्यक्रम में साहित्यकार रजनीश मिश्र, कार्तिकेय शुक्ल, भगवती गुप्ता, संदीप सरस, डॉ शैलेष गुप्त वीर, मनोज शुकदेव, आनंद खत्री, सतीश कौशिक, नैमिष सिंह,आदि ने काव्य पाठ किया।