आतिश की शायरी अपने समय की परिस्थितियों का उज्जवल अध्याय हैं।
"क्लासकीय अहद और ख़्वाजा हैदर अली आतिश" पर दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार संपन्न
लखनऊ (सिराज टाइम्स न्यूज़) आतिश की विचारधारा समाज के तमाम अंदरुनी एवं बाहरी संघर्षों पर आधारित है। उन्होंने आत्मा के स्थान पर शरीर का वर्णन करते हुए शब्दों की सुंदरता पर बहुत ज्यादा बल दिया है। डॉक्टर सबीहा अनवर ने इसको आतिश की बदनसीबी करार देते हुए उत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी द्वारा आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार विषयक क्लासकीय अहद और ख्वाजा हैदर अली आतिश के दूसरे दिन अध्यक्षीय भाषण के दौरान यूपी प्रेस क्लब में व्यक्त किये।
डॉ मज़हर अहमद मुख्य अतिथि के तौर पर उपस्थित रहे। कार्यक्रम में शाइस्ता आलम , अतहर हुसैन, अजा़ मुईन, मूसी रजा़, मुज्तबा हसन और मोहम्मद सईद अख्तर ने आतिश से संबंधित विभिन्न प्रकार के लेख पढ़े ।
डॉ उमैर मंज़र ने गोष्टी का सफल संचालन किया। डॉक्टर सबीहा अनवर ने अपने विचारों को आगे बढ़ाते हुए कहा कि यह गौर करने की आवश्यकता है कि यह दबिस्तान आखिर क्या है ,वास्तविकता में यह सोचने और जीवन पर गौर करने के उपाय है। डॉक्टर सबीहा अनवर ने लेखकों की हौसला अफजा़ई करते हुए कहा कि यह एक अच्छा अनुभव है ,खुशी की बात है कि उर्दू के एक पूर्ण कवि को, जो
कि लखनऊ का था उसे दो दिनों से लखनऊ में याद किया जा रहा है ।
डॉक्टर सबीहा अनवर ने कहा किसी भी कलाकार के लिए अपने प्रतिज्ञा और समुदाय की आवश्यकताओं से दूर हो जाना एक स्वाभाविक प्रक्रिया कहा जाएगा जाएगा, क्योंकि वह एक ही समय में सांस लेता है ,सामान्य परिस्थितियों को भी ध्यान रखना होगा इसलिए तफहीम आतिश के लिए ज़माने अहद की सामान्य स्थितियों को भी ध्यान में रखना होगा ।
सफ़दर का़दरी ने आतिश के कृतियों से संबंधित लेख पढ़ते हुए कहा कि दबिस्तान लखनऊ जिन कवियों ने मानक स्थापित किया है शायद ही उनमें ख्वाजा हैदर अली आतिश के अलावा कोई दूसरा सूची में हो। उन्होंने कहा कि बड़े-बड़े आलोचकों ने अपने काव्य स्थिति को निर्धारित करने की कोशिश की परंतु संकेत कायनाय सार के साथ अधिक हस्तक्षेप था। लखनऊ के साहित्य के कुछ साहित्यिक इतिहास और समीक्षाएं सामने आई हैं जिन्हें आतिश की काव्य स्थिति के संदर्भ में कहना मुश्किल है ।
आज से 70 वर्ष पूर्व के छात्र के रूप में शोध प्रबंध लिखते हुए खलीलुर रहमान आज़मी ने जो लेखन प्रस्तुत किए थे मुझे उसे अब भी आतिश के काव्य स्थिति को निर्धारित करने की कुंजी के रूप में नहीं माना जाता है, उनकी थीसिस में उल्लेख किए गए नामों के अलावा मोहम्मद हुसैन आजा़द, इमदाद इमाम असर , प्रोफेसर शाह अब्दुस्सलाम, खलीलुर रहमान , सैय्यद जहीर अहसन, डॉ सैय्यद एजाज हुसैन का इंतखाब कलाम -ए- आतिश मय मुक़दमा, डॉक्टर शोएब राही, प्रोफेसर मोहम्मद जा़किर के लेखन की समीक्षा की।
सेमिनार के पश्चात आतिश की स्मृति में मुशायरा का आयोजन किया गया , जिसकी अध्यक्षता शिक्षक व कवि कमर संभली ने की, संचालन रिज़वान अहमद फारूकी ने की।
मुशायरा में बेखुद लख़नवी , मख़मूर काकोरवी, संजय मिश्रा, शौक अकील फारूकी , तारिक़ क़मर, उमैर मंज़र, खा़लिद कै़सर, डॉक्टर अहमद अयाज़ी, आयशा अय्यूब , मोहम्मद अरशद मरकज़ी और महमूद उल हसन , ने अपने कलाम से नवाजा़।
उक्त अवसर पर डॉक्टर तबस्सुम किदवई , आरिफ नगरामी, सुहेल वहीद , इरफान अली, डॉक्टर परवीन सुजात, तारिक हुसैन, डॉक्टर शुजा उल हक , शादाब आलम , शबाना सलमान , डॉक्टर रेशमा परवीन, डॉक्टर नेहा इकबाल, डॉक्टर शाइस्ता तबस्सुम, अतिया बी, निसार अहमद जियाउल्लाह , डॉक्टर मसीहुद्दीन, गुलशन जहां, शाहिद हबीब आदि ने उपस्थिति दर्ज कराई ।
कार्यक्रम के समापन के दौरान उवैस संभली ने तमाम आगंतुकों के प्रति आभार व्यक्त किया।