मो० इरशाद ने गरीबों के लिए अपनी हमदर्दी और खजाने को दोनों हाथों से खोल दिया

नजीबाबाद , बिजनौर (अब्दुल रऊफ की रिपोर्ट) हमारे संवाद सूत्र के अनुसार अदब सिटी हरिद्वार रोड के निकट  मोहम्मद इरशाद , सिविल जज से मिलकर मानवता का एहसास हुआ उनकी दरियादिली को देखकर बड़ा पैगाम मिला इस लॉकडाउन करोना वायरस महामारी के जमाने में जहां इंसान एक वक्त का खाना खाने के लिए परेशान है वही मोहम्मद इरशाद जैसे महापुरुषों ने गरीबों के लिए अपनी हमदर्दी और खजाने को दोनों हाथों से खोल दिया यह देख कर बहुत प्रशंसा हुई उनसे मिलने के लिए खुद मुझे इंतजार करना पड़ा वह गरीबों की मदद करने में इतने व्यस्त हैं क्या आप अंदाजा नहीं लगा सकते गरीबों की भीड़ उनके ऑफिस पर इस तरह थी जैसे कोई गवर्नमेंट ने गरीबों के लिए कोई ऑफर निकाला हो यह देख कर हम भी दंग रह गए जब उनसे बात हुई तो उन्होंने कहा मैं कोई पब्लिसिटी नहीं चाहता मैं तो अल्लाह की रजा के लिए गरीबों की इस परेशानी के दौर में मदद कर रहा हूं फिर इसमें किसी तरह का कोई भेदभाव नहीं था सभी भाई हिंदू मुस्लिम सब एक कतार में खड़े थे मैं उस वक्त वहां से गुजरा जब मैंने यह लाइन बनी हुई देखी तो मैं वहां पहुंचा तब जाकर यह वाक्य समझ आया मोहम्मद इरशाद साहब बहुत बड़ा काम को अंजाम दे रहे हैं हमने जब गरीबों से बात की तो उन्होंने कहा यह सिलसिला आज का नहीं यह तो रमजान के पहले दिन से ही बरकरार है मोहम्मद इरशाद साहब का एक तरीका यह भी काबिले तारीफ है कि वह जिस शख्स की मदद कर रहे हैं वह वाकई ही वही है या कोई और आधार कार्ड पर नाम देखकर और उनको देखकर उनकी मदद कर रहे हैं ताकि ऐसा ना हो कि और गरीबों का हक रह जाए और कुछ लोग ही उसका फायदा उठाते रहे 15 दिन से हर रोज एक किट बांटी जाती थी जिसमें घर की जरूरत का पूरा सामान मौजूद रहता था आज किसी वजह से किट का इंतजाम नहीं हुआ तो उन्होंने गरीबों को पांच ₹500 से सबकी मदद की  मोहम्मद अरशद साहब का एक तरीका यह भी काबिले तारीफ था कि वह जब  गरीबों की  मदद कर रहे थे अपने बेटे को सामने बिठाकर कर रहे थे ताकि कभी भी किसी गरीब को जरूरत पड़े तो उनका बेटा भी वही कार्य करें जो मोहम्मद अरशद साहब कर रहे थे हमारे देश में ऐसे महापुरुषों की कमी नहीं जो चुप कर गरीबों की मदद कर रहे हैं इससे यह पैगाम मिलता है जो साहिबे माल है उनको गरीबों के लिए फ्रंट पर आकर भी मदद करनी चाहिए जिसकी वजह से और लोग भी गरीबों की मदद के लिए सामने आ सके ऐसा कर कर उनके दिल को जो खुशी मिलती है वह इजहार करने के लायक नहीं और वह सबको करो ना महामारी से बचने के लिए और लॉकडाउन का पालन करने के लिए कह रहे थे फिर भी लोग ना जाने कहां-कहां से पैदल आकर उनके ऑफिस के बाहर आकर लाइन लगा लेते है । उक्त रिपोर्ट अब्दुल रऊफ ने दी।



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