नई दिल्ली / लखनऊ : जंग-ए-आज़ादी मे हिन्दुस्तानियों की क़यादत करने वाले हिन्दुस्तान की सबसे बड़ी और ख़ुफ़िया तहरीक “रेशमी रुमाल” की बुनियाद डालने वाले, जमीयत उलेमा-ए-हिंद के संस्थापक शेखुल हिंद मौलाना महमूद-उल-हसन {रह.} 30 नवम्बर 1920 को इंतक़ाल कर गये तो उनकी मय्यत को देवबंद मे ग़ुसुल के लिये उतारा गया तो उनका बदन बदन न रह कर सिर्फ़ हड्डियो का ढाँचा रह गया था और उनकी उन हड्डियो और खाल पे सिर्फ़ हंटरो की मार के रंगें निशान थे , ये देख वहाँ मौजूद लोग रो पड़े थे। 1851 में उत्तर प्रदेश के बरेली में आपकी विलादत हुई थी, जब आपकी उम्र पंद्रह साल की थी तब देवबंद में दारुल उलूम मदरसे की बुनियाद रखी गयी थी, और आपको देवबंद के इस मदरसा का सबसे पहला शगिर्द बनने का शर्फ़ हासिल हुआ। दारूल उलूम में तदरीस के बाद वहीं दर्स देने का काम भी जारी कर दिया। इल्मी क़ाबिलियत का अंदाज़ा लगाने के लिए ये बात काफ़ी होगी कि मौलाना ओबैदुल्लाह सिंधी, मौलाना अशरफ़ अली थानवी रहमतूल्लाह अलयही ,मौलाना हूसैन अहमद मदनी, रहमतूल्लाह अलयही, मौलाना अनवर शाह कश्मीरी रहमतूल्लाह अलैह०, मौलाना किफ़ायतुल्लाह , रहमतूल्लाह अलैह०, मौलान...