अंतरराष्ट्रीय स्तर के प्रसिद्ध शायर और साहित्यकार सैय्यद खुर्शीद अफसर बिसवांनी के जन्म दिवस पर विशेष !
रिपोर्ट : वहाजुद्दीन ग़ौरी
बिसवां, सीतापुर (सिराज टाइम्स न्यूज़) अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध शायर एवं साहित्यकार स्वर्गीय सैय्यद खुर्शीद अफसर बिसवांनी हिंदी- उर्दू साहित्य के लिए एक मिसाल थे। 16 मार्च सन् 1940 को महापुरुषों की नगरी बिसवां में जन्मे खुर्शीद अफसर बिसवांनी ने जीवन पर्यंन्त साहित्य की सेवा करते हुए अपने कस्बे का, देश में ही नहीं वरन् विदेशों में भी नाम रौशन किया। उन्होंने 21 वर्ष की उम्र से ही साहित्य लेखन का कार्य प्रारम्भ किया । उन्होंने 1961 में कानपुर से प्रकाशित साप्ताहिक पत्र 'इस्कतबाल' और 'हम लोग' में लेखन कार्य का शुभारम्भ किया। यहीं पर उन्होंने उर्दू की किताब 'उभरते फनकार' व 'नेहरू की आवाज' तथा 'जन्नत के नजारे' और 'सरे शाम' का लेखन कार्य किया । 1962 में इनका काव्य संग्रह 'नक्शे जुनू' तथा गीतों का संग्रह 'गीत नगर' बज्मे उर्दू कानपुर से प्रकाशित हुआ। 1964 में सायं दैनिक समाचार पत्र 'कौमी सियासत' व 'दैनिक आदर्श' कानपुर में लेखन कार्य किया। मक्तब ए दीन व अदब लखनऊ के अन्तर्गत 'करामाते गुलजार' व 'गुलजारे सुखन' में कार्य किया। इसके अलावा दर्जनों अन्य ग्रंथों की रचनाएं व पत्रों के लेखन का कार्य किया। सैय्यद खुर्शीद अफसर बिस्वानी के शेर खुद्दारी की झलक लिए हुए दुनिया-ए- अदब में खुर्शीद की तरह रोशन रहेगा और खुर्शीद अफसर बिसवांनी के नाम को रोशन करता रहेगा। उन्होंने अपनी शायरी से कौमी एकता के तराने गाये। मोहब्बत और भाईचारे का पैग़ाम दिया, जिससे जब तक दुनिया रहेगी तब तक उनका नाम अदब की दुनिया में एहतराम से लिया जाएगा। उन्हें साहित्य लेखन के लिए दर्जनों अंतर्राष्ट्रीय पुरुस्कार भी मिले जिसमें बज्मे उर्दू कानपुर द्वारा 8 जनवरी 1963 में 'सितार ग़ज़ल एवार्ड', 1978 में 'उर्दू अदब एवार्ड', 1981 में ऑल इण्डिया हिन्दी उर्दू संगम लखनऊ की ओर से 'कौमी अदब एवार्ड' तथा ऑल इण्डिया शफीक मेमोरियल सोसाइटी जौनपुर द्वारा 'शफीक जौनपुरी गजल एवार्ड', 1993 में 'असरा गजल एवार्ड', 1995 में राष्ट्रीय एकता परिषद उत्तर प्रदेश द्वारा 'राष्ट्रीय एकता साहित्य एवार्ड' , 1996 - 97 में उत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी का साहित्य सेवा पर अखिल भारतीय पुरस्कार, 1998 में 'जकी हसन अनीस मेमोरियल एवार्ड', 'साहिर लुधियानवी गजल एवार्ड', 'इम्तियाज मीर व नवाए मीर एवार्ड', 'अजय सहगल एवार्ड' व 'भारत एक्सलैन्सी एवार्ड' सहित अन्य दर्जनों एवार्डों से नवाजे गए स्वर्गीय खुर्शीद अफसर बिसवांनी उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान लखनऊ, उत्तर प्रदेश उर्दू एकेडमी लखनऊ, राष्ट्रीय एकीकरण परिषद उत्तर प्रदेश एवं खाद्य और आपूर्ति उत्तर प्रदेश लखनऊ के पूर्णकालिक सदस्य भी रहे।राष्ट्रीय भाषाई समिति उत्तर प्रदेश के संस्थापक/ मंत्री व उ० प्र० मुत्तहदा मुगज लखनऊ के महामंत्री भी रहे। स्व० श्री बिसवांनी की शायरी बड़े अनुभव और विवेक से परिपूर्ण थी। ऐसा कोई विषय नहीं जिस पर उन्होंने कलम न उठाया हो। उनकी पकड़ समाज में होने वाले खतरों पर बहुत थी। उन्होंने समाज को आगाह भी किया था।
क़ौमी एकता के अलम्बरदार शायर खुर्शीद अफसर बिसवांनी हमेशा हालातों व मुश्किलों से लड़ने का संदेश आम जनता को देते रहे। भारतीय समाज के वह सचेतक थे। उनकी शायरी में भारतीय सभ्यता और इन्सानियत की तस्वीर झलकती है। उनके जज्बातों का अंदाज उनकी शायरी से लगाया जा सकता है।
खुर्शीद अफसर बिसवांनी ने मोहब्बत के पैगाम को आम किया । आप का कलाम सभी धर्मों को जोड़ने वाला था । वे उर्दू दुनिया के उन बड़े शहरों में थे जिन्होंने मरते दम तक कौ़मी एकता और वतन परस्ती का पाठ पढ़ाया।
ऐसे लोकप्रिय हर दिल अजीज शायर स्व० खुर्शीद अफसर बिसवांनी पर बिसवां ही नहीं वरन् पूरे जनपद को नाज रहेगा। इस तरह जब हम श्री बिसवांनी के इतिहास पर नजर डालते हैं!
तो संक्षेप में पता चलता है की ख़ुर्शीद अफ़सर बिसवांनी मुशायरों के लोकप्रिय शायर है। स्वर्गीय बिसवांनी के पिता का नाम सैय्यद आशिक़ अली था जो नौकरी के सिलसिले में कानपूर में निवास करते थे,इसलिए अफ़सर का आरम्भिक ज़माना भी वहीँ गुज़रा, अपने पिता के साथ जिगर बिसवांनी और मौलाना हसरत मोहानी की महफ़िलों में शरीक़ होते थे। इनके असर से ऱफ्ता ऱफ्ता शाइरी भी करने लगे और मुशायरों में शरीक होने लगे।
शाइरी के साथ नस्र भी लिखी. ‘सालेह अदब के मुहर्रिक-ए- आज़म’, ‘इंतेखाब-ए-कलाम जिगर बिस्वानी’ उनकी नस्र की किताबें हैं. शाइरी का संग्रह ‘दोपहर’ के नाम से प्रकाशित हुआ। मरहूम अफसर बिसवांनी हम लोगों से हमेशा के लिये 17 जून 2001 मेे जुदा हो गये।
16 मार्च को उनकी यौमे पैदाइश के मौक़े पर खिराजे अकी़दत पेश करते हुए इस बात पर फख़्र हो रहा है कि कस्बा बिसवां की माटी में उर्दू अदब के ऐसे नायाब हीरे ने जन्म लिया था।
गंगा - जमुनी तहज़ीब के अलमबरदार मअरूफ शायर सैय्यद खुर्शीद अफसर बिसवांनी को जिगर वेलफेयर एण्ड डेवलेपमेन्ट सोसाइटी (रजि0) ने उनकी यौमे पैदाइश के मौके़ पर खि़राजे अक़दीत पेश करते हुये उनकी रूह की मग़फिरत के लिये दुआयें व ईसाल सवाब का खुसूसी एहतिमाम किया। जिसमे मुख्य रूप से सिराज अहमद ने कहा कि अफसर बिसवानी को इस दौर मे खास तौर से याद किया जा रहा है क्योंकि इस वक़्त शायरों एवं कवियों , साहित्यकारों , पत्रकारों एवं सामाजिक कार्यकर्ताओं मे गंगा जमुनी तहज़ीब का नज़रिया कम नज़र आ रहा है। मरहूम अफसर बिसवांनी को याद करने वालों मे वरिष्ठ पत्रकार तथा साहित्यकार आफताब अख्तर बिसवानी, वरिष्ठ साहित्यकार एवं पत्रकार पदमकान्त शर्मा प्रभात , वरिष्ठ पत्रकार एवं समाजसेवक सलाहुद्दीन अंसारी, वरिष्ठ पत्रकार, मुफ़्ती अब्दुल्लाह ग़ज़ाली नदवी, अलमास अंसारी, कैफ़ अंसारी , मिसबाहुद्दीन ग़ौरी, इमादुद्दीन ग़ौरी, मो० शुऐब आदि हैं।
वहाजुद्दीन ग़ौरी ( उप संपादक सिराज टाइम्स, समाचार पत्र समूह ) द्वारा प्रस्तुत हैं : मरहूम सैय्यद खुर्शीद अफसर बिसवांनी की कुछ मशहूर शायरी !
"हर शाख़ संवरती है जब आती है बहार हर रंग के फूलों से चमन बनता है , इक क़ौम कभी मुल्क़ नहीं बन सकती , हर क़ौम के मिलने से वतन बनता है"।।
" क्या लोग है, ख़ुद अपनी तहज़ीब मिटा कर । किस शान से तारीख़ के मलबे पे खड़े है ,
इंसाफ हो , तहजी़ब हो,तारीख़ हो ,कुछ लोग, हर मोड़ पे हारे है ,मगर जिद पर अड़े है"।।
"सूरज रहे, चिराग़ रहे , चांदनी रहे, आंखें मेरी रहे ना रहे रोशनी रहे" ।।
"जो ग़म किसी रफीक़ - ए- सफ़र से मदद करें,
इस ग़म को हर खुशी का बदल कह लिया करो"।।
"हर क़ब्र में किसी ना किसी का हबीब है, हर मक़बरे को ताजमहल कह लिया करो"।।
"तुमसे मिलकर अपना ग़म कह लेता हूं ,
यूं दिल का बोझ ज़रा हल्का हो जाता है"।।
"मैं आबसार नहीं जो बुलंदियों से गिरूं, वह सबज़ह हूं जो ज़मीन पर भी सर उठाता है" ।।
" हम अपने बाग़ के सब फूल चुनकर बाँट देते हैं,
वो कैसे हैं जो इन फूलों में खंजर बाँट देते हैं "।।
"हम भटकते रहे बेकार ही शहरों शहर , हथेली की लकीरों में मुकद्दर अपना" ।।
"ऐ मेरे सर कभी का़तिल के न आगे झुकना । ये इरादा हो तो फिर तन से जुदा हो जाना" ।।
"जाने किस संग की तक़दीर में हम लिखे हैं । रास्ता देख रहे हैं कई पत्थर अपना "।।
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