रहमतों और बरकतों का महीना है रमजा़न : मौ० आसिम इक़बाल नदवी

● सब्र के साथ समाज के गरीब और जरूरतमंदों के साथ  हमदर्दी का महीना है ।

            रिपोर्ट : वहाजुद्दीन ग़ौरी
बिसवां, सीतापुर :  यूं तो रमजान का पूरा महीना मोमिनो के लिए खुदा की तरफ से अज़मत, रहमत और बरकतों से  लबरेज़ है । लेकिन अल्लाह ने इस मुबारक महीने को  तीन अशरों में तक़सीम किया है। पहला अशरा खुदा की रहमत वाला है।  1 से 10 रमजान अर्थात पहले अशरे में खुदा की रहमत नाजिल होती है।  रमजान का चांद नजर आते ही शैतान कैद कर लिया जाता है। जन्नत के दरवाजे खोल दिए जाते हैं और दोजख के दरवाजे बंद कर दिए जाते हैं । अल्लाह तआला अपनी रहमत से  गुनाहगारो को अज़ाब से निजात देते हैं। नेक काम के सवाब मे 70 गुना इज़ाफ़ा कर दिया जाता है।  रसूल अकरम स०अ०स० ने फरमाया कि अगर लोगों को मालूम हो जाए कि रमजान क्या चीज है तो मेरी उम्मत साल के 12 महीने रमजान होने की तमन्ना करेगी।  रमजान का महीना रहमत व बरकत वाला है।  हर मर्द बच्चे औरत और बूढ़े रोजे के साथ नमाज-  तरावीह में मशगूल रहते हैं । पहला अशरा खत्म और दूसरा अशरा शुरू होने वाला है। माहे रमजान को नेकियों का मौसम ए-  बहार  कहा गया है । यह इस्लामी  कैलेंडर का नौवां महीना है।  रोजा इस्लाम के 5 स्तंभों में से एक है। जो शख्स आम दिनों में इबादतों से दूर होता है वह रमजान में इबादत गुलजार बन जाता है। सब्र के साथ समाज के गरीब और जरूरतमंदों के साथ  हमदर्दी का महीना है । रोजेदारों को इफ्तार कराने वाले के गुनाह माफ हो जाते हैं। इस महीने में कुरआन की तिलावत की जाती है।
मौ० आसिम इक़बाल नदवी ने बताया कि पहले अशरे में लोगों को चाहिए कि  हर इबादत के बाद रब से दुनिया और आखिरत (मरने के बाद) के लिए रहमत मांगे । दूसरा अशरा  मगफिरत यानी गुनाहों की माफी का है।जो शख्स गुनाहों से तौबा कर दुआ मांगता है तो इस अशरे की बरकत से अल्लाह उसके गुनाहों को माफ कर देता है। वैसे तो रमजान का हर अशरा फजीलत भरा है। लेकिन अंतिम अशरा जहन्नुम से मुक्ति का होता है। इस अशरे के 10 दिनों में ही 5 ताक रातें लैलतुल क़द्र होती है। जो रमजा़न के 21, 23, 25, 27, व 29 की रात है । इन रातों में इबादत का सवाब एक हजार माह के इबादत  से भी अधिक है।

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