आम बागवानों को इस माह किस प्रकोप से बचना होगा ?

सीतापुर (सिराज टाइम्स न्यूज़) अक्सर यह देखा गया है की किसान या बागवान को समय के अनुसार उचित जानकारी नही मिल पाती है जिससे उनकी फसल को अधिक नुक्सान हो जाता है।और इसका प्रभाव सीधे नागरिकों पर पड़ता है। ऐसे में हिंदी दैनिक सिराज टाइम्स समाचारपत्र सम्बंधित अधिकारी व विशेषज्ञों के माध्यम से आम बागवानों को इस माह होने वाले प्रकोप से बचने के उपाय उपलब्ध करा रहा है। सीतापुर में तैनात जिला उद्यान अधिकारी ने बताया कि आम की उत्पादकता सुनिश्चित करने के दृष्टिकोण से यह आवश्यक है कि आम की फसल को सम-सामयिक हानिकारक कीटों से बचाने हेतु उचित समय पर प्रबन्धन किया जाये।
सांकेतिक चित्र 

माह नवम्बर एवं दिसम्बर अत्यन्त महत्वपूर्ण है, इस माह में गुजिया एवं मिज कीट का प्रकोप प्रारम्भ होता है जिससे फसल को काफी क्षति पहुॅचती है। अत एवं उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग, उ0प्र0 द्वारा बागवानों को कीट के प्रकार एवं प्रकोप के नियंत्रण हेतु सलाह दी जाती है कि गुजिया कीट के शिशु जमीन से निकल कर पेंड़ों पर चढ़ते हैं और मुलायम पत्तियों, मंजरियों एवं फलों से रस चूसकर क्षति पहुॅचाते हैं। इसके शिशु कीट 1-2 मिमी0 लम्बे एवं हल्के गुलाबी रंग के चपटे तथा मादा वयस्क कीट सफेद रंग के पंखहीन एवं चपटे होते हैं। इस कीट के नियंत्रण के लिए बागों की गहरी जुताई/गुड़ाई की जाये तथा शिशु कीट को पेंड़ों पर चढ़ने से रोकने के लिए माह नवम्बर-दिसम्बर में आम के पेंड़ के मुख्य तने पर भूमि से 50-60 से0मी0 की ऊॅचाई पर 400 गेज की पालीथन शीट की 50 से0मी0 चौड़ी पट्टी को तने के चारों ओर लपेट कर ऊपर व नीचे सुतली से बांध कर पॉलीथीन शीट के ऊपरी व निचले हिस्से पर ग्रीस लगा देना चाहिए जिससे कीट पेंड़ों के ऊपर न चढ़ सके। इसके अतिरिक्त शिशुओं को जमीन पर मारने के लिए दिसम्बर के अंतिम या जनवरी के प्रथम सप्ताह से 15-15 दिन के अन्तर पर दो बार क्लोरीपाइरीफॉस (1.5प्रतिशत) चूर्ण 250 ग्राम प्रति पेंड़ के हिसाब से तने के चारों ओर बुरकाव करना चाहिए। अधिक प्रकोप की स्थिति में यदि कीट पेंड़ों पर चढ़ जाते हैं तो ऐसी दशा में मोनोक्रोटोफॉस 36ई0सी0 1.0 मिली0 अथवा डायमेथोएट 30 ई0सी0 2.0 मि0ली0 दवा को प्रति ली0 पानी में घोल बनाकर आवश्यकतानुसार छिड़काव करें।
इसी प्रकार आम के बौर में लगने वाले मिज कीट मंजरियों, तुरन्त बने फूलों एवं फलों तथा बाद में मुलायम कोपलों में अण्डे देती हैं, जिसकी सूड़ी अन्दर ही अन्दर खाकर क्षति पहुॅचाती हैं। इस कीट के नियंत्रण के लिए यह आवश्यक है कि बागों की जुताई/गुड़ाई की जाये तथा समय से कीटनाशक दवाओं का छिड़काव करना चाहिए्। इसके लिए फेनिट्रोथियान 50ई0सी0 1.0 मि0ली0 अथवा डायजिनान 20 ई0सी0 2.0 मिली0 अथवा डायमेथोएट 30 ई0सी0 1.5 मि0ली0 दवा प्रति लीटर पानी में घोलकर बौर निकलने की अवस्था पर एक छिड़काव करने की सलाह दी जाती है। कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि यदि आम बागवान वैज्ञानिक पद्धतियों पर अमल करेंगे तो उनकी फसलों को नुक्सान से बचाया जा सकता है !

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