दीन की खिदमत का मौका जहां भी मिले उसे हकीर व मामूली ना समझे : मुफ्ती रहमतुल्लाह नदवी

बिसवां, सीतापुर (सिराज टाइम्स न्यूज़) दीन की खिदमत का मौका जिस जगह व जिस सूरत में मिले उसे हकीर व मामूली नही समझना चाहिए, बल्कि उसे क़दर की निगाह से देखना चाहिए।
 उक्त बातें फुर्कानिया एजुकेशनल सोसाइटी के बैनर तले नदवतुल उलमा लखनऊ की शाखा अलजामिअतुल फुर्कानिया के प्रांगण में आयोजित इज्तिमा अहबाब फारिग़ीन नदवा दिसम्बर १९९७ में मुख्य अतिथि के तौर पर मुफ्ती रहमतुल्लाह नदवी ने कहीं।


 आगे उन्होंने कहा कि पतंग की जब डोर कटती है तो वह बिल्कुल नीचे आ जाती है। ठीक इसी तरह हम यानि हुफ्फाज़ और आलिम हैं। इसलिए हमें स्कूल व मदरसों से शिक्षा प्राप्त करने के बाद कुरआन और हदीस की रोशनी में किसी भी विषय पर कम से कम एक घंटा ग़ौर व फ़िक्र करना चाहिए। अगर लिखने का शौक है तो वह इस काम को भी अंजाम दे सकता है, या वह किसी मस्जिद में दर्स कुरआन और दर्स हदीस की जिम्मेदारी ले ले। 
नदवा विश्वविद्यालय से आए मशहूर शिक्षक मुफ्ती रहमतुल्लाह नदवी ने अपने बयान में कहा कि दीन की शिक्षा प्राप्त करने के बाद भी अगर हम बिजनेस या अन्य कार्य कर रहे हैं और उसमें तरक्की भी हासिल हो रही है तब हमें सालाना नफा का कुछ हिस्सा निकालकर अपने शिक्षकों व इदारों को उपहार के तौर पर दे सकते हैं।


मुख्य अतिथि ने खिताब करते हुए कहा कि नदवा विश्वविद्यालय का एक बच्चा था जो पढ़ाई लिखाई से दूर भागता रहा अंत में जब वह जाने लगा, तो उससे प्रकांड विद्वान मौलाना जकरिया संभली ने कहा कि किसी भी क्षेत्र में दीन की खिदमत का मौका मिले तो उसे मत गवाना। उस बच्चे ने अपने उस्ताद की बात को मान लिया और एक मदरसे में शिक्षण कार्य करने लगे, आज वह नई दिल्ली शाही जामा मस्जिद में बतौर इमाम है।

उक्त कार्यक्रम में जमीयत उलमा-ए-हिन्द के जिला अध्यक्ष व मदरसा फुर्कानिया के नाजि़म मौलाना आसिम इकबाल नदवी ने अपने संबोधन में कहा कि जिन मस्जिदों में जुमे की नमाज़ से पहले बयान नही होता है तो वहां पर आलिम हज़रात जाकर अपनी जिम्मेदारी को ले सकते हैं। जिससे आपको बेपनाह फायदे मिलेंगे। अवामी राब्ता क़ायम होगा, बेबाकी से सही पैगाम पहुंचाने वाले मिज़ाज और उनकी सलाहियतों में उन्नति होगी। 
उन्होंने अपने बयान में कहा कि आज शिक्षकों को अपने व्यवहार में परिवर्तन लाने की आवश्यकता है, क्योंकि एक विद्यार्थी का व्यवहार अच्छा तभी होगा जब हम अनावश्यक बातों से दूर रहेंगे। 
अन्य विद्वानों ने भी जलसे को संबोधित किया। 
कार्यक्रम के दौरान नदवा विश्वविद्यालय से फारिगीन का संक्षिप्त परिचय भी कराया गया।
प्रोग्राम की अध्यक्षता सीनियर नदवी इरफान बेग औरंगाबादी ने की, सफल संचालन संयुक्त रूप से मौलाना तय्यब नदवी व मिल्ली कौंसिल के महासचिव मौलाना मुजीबुर्रहमान नदवी ने की। कार्यक्रम का समापन मौलाना खुर्शीद आलम नदवी की दुआ पर हुआ। 
इस इजलास में अन्य प्रदेशों से भी नदवी साथियों की शिरकत रही।

इस दौरान मुफ्ती अब्दुल्लाह ग़ज़ाली नदवी, मौलाना एजाज अहमद नदवी, मौलाना आजम नदवी, मौलाना रिजवान नदवी, मौलाना मुनीर नदवी, मौलाना अब्दुल हयात नदवी, मौलाना मलिक मुहम्मद अहमद नदवी,
मुफ्ती इदरीस नदवी, मौलाना शहाबुद्दीन नदवी बिलासपुरी, मौलाना अनीस अहमद नदवी, मौलाना मुहम्मद शाहिद अली नदवी, मौलाना हकीम सालिम नदवी, मौलाना अकील अहमद नदवी भोपाली, मौलाना सलीम नदवी, मौलाना कामिल नदवी, मौलाना शुऐब नदवी, मौलाना यासीन नदवी, मौलाना सलमान नदवी, मौलाना फखरुद्दीन नदवी, मौलाना वकास नदवी, मौलाना खलीलुर्रहमान नदवी, मौलाना अब्दुल रशीद नदवी इमाम मुसाफिरखाना, डा० शाहिद इकबाल अलीग, डा० आसिफ, मास्टर इस्लाम समेत दर्जनों नदवी साथी उपस्थित रहे।

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