हमारी जिंदगी सुन्नतों के रंग में रंगी होनी चाहिए : मौलाना अफजालुर्रहमान

दावतुल हक़ का तीन दिवसीय इज्तिमा संपन्न

बिसवां, सीतापुर (सिराज टाइम्स न्यूज़) कस्बे की कंकर वाली शाही जामा मस्जिद में दावतुल हक़ की क्षेत्रीय यूनिट के तत्वावधान में तीन दिवसीय तबलीगी व तालीमी व इस्लाह इज्तिमा का आयोजन किया गया। जिसमें अन्य जिलों से मुस्लिम धार्मिक विद्वानों ने शिरकत की।

उक्त इज्तिमा में प्रसिद्ध उलमा-ए- किराम द्वारा अल्लाह के बताए रास्तों पर चलने के लिए व सही अकीदे पर अमल करने के लिए , इबादात, मामलात, व अपने व्यवहार में सुन्नतों को अपनाने के लिए, कुरआन मजीद को सही से पढ़ने के लिए, अज़ान को सही तरीके से देने के लिए, जिहालत भरी जिंदगी से दूर रहने के लिए आदि गंभीर विषयों पर खूब समझाया गया तथा शपथ दिलाई गई।

मुख्य अतिथि के तौर पर प्रमुख समाज सेवक , बुजुर्ग व मशहूर विद्वान मौलाना अफजालुर्रहमान, शेखुल हदीस मदरसा अशरफुल मदारिस हरदोई ने मौजूद सैकड़ों नमाजियों को खिताब करते हुए कहा कि हमारी जिंदगी मदनी आका मुहम्मद सल्लाहु अलैहिवसल्लम वाली हो जाए इस फिक्र को जोड़ना और ओढ़ना है, इसी में जीना और मरना है।


अल्लाह पाक यह चाहते हैं कि एक-एक ईमान वाला , एक- एक मुसलमान, उसके अकीदे हुजूर वाले हो, उसकी इबादतें हुजूर वाली हों, उसके मामलात हुजूर वाले हों,उसकी मुआशिरत हुजूर वाली हों, उसके इख्लाक हुजूर वाले हों।
कहने का मकसद है कि अगर कोई हमें देखें तो उसे यह अहसास होना चाहिए कि हम रसूल के गुलाम है। हमारी जिंदगी में रंग सिर्फ मुहम्मद स०ल०अ०वस० का होना चाहिए। 
मौलाना ने आगे कहा कि आज हम आमतौर पर मौजूदा हालात को कसूरवार ठहरा कर दीन पर चलना मुश्किल बताते हैं । क्या हमने अपनी जिंदगी में दीन लाने के लिए कोई भी फिक्र व कोशिश की है? 
जब हमने कोई कोशिश ही नहीं की तो हालात को कुसूर कैसे दे सकते हैं ? यह तो बहाना है दरअसल हम दीन को थामना ही नहीं चाहते।
लेकिन यह बात याद रखें कि दीन का निजाम कयामत तक चलता रहेगा। अल्लाह पाक ने दीन को हमारे लिए आसान कर दिया है, बर्दाश्त करने की कूवत जितनी अल्लाह ने हमें दे रखी है, सिर्फ उतना ही दीन हमको दिया गया और उतनी ही मुश्किलों से सामना होता है जितना अल्लाह ने हमें बर्दाश्त की कूवत दे रखी है।
रसूल अकरम मु०स०ल०अ०वस० का लाया हुआ तरीका सबसे ज्यादा हसीन व सबसे ज्यादा जमील है। लेकिन हुस्न उसी को नजर आएगा जिसकी आंखों में रोशनी होगी ।
हर हसीन चीज पर आदमी का दिल खिचता है , इसलिए दीन पर अमल करना भी आसान हो जाता है। मुफ्ती मुहम्मद राशिद आज़मी, नायब मोहतमिम, दारुल उलूम देवबंद ने कहा कि दुनिया को अपना महबूब ना बनाओ इसके लिए अपनी आखिरत को बर्बाद ना करो। पैगंबर मुहम्मद सल्लाहु अलैहिवसल्लम ने तालीम दी है कि पूरी दुनिया की हैसियत अल्लाह के लिए मुरदार बकरी की तरह है। दुनिया को जरूरत के मुताबिक इख्तियार करना है ना कि दिल लगाने की। आज हमारी नमाजो में खुज़ू व खुशू रुखसत होता जा रहा है । नमाज और कुरआन को सही तरीके से पढ़ने की आदत डालो।
मौलाना अब्दुल जब्बार ने कहा कि अल्लाह के हर फैसले के पीछे कोई ना कोई अजीम हिकमत होती है। तुम्हारे पास असबाब कुछ भी हो लेकिन भरोसा अल्लाह पर करो जब उनके भरोसे निकलोगे तो अल्लाह कोई ना कोई रास्ता जरूर निकाल देंगे इंशा अल्लाह। क्योंकि इंसानों को थोड़ा इल्म दिया गया है। जब भी हालात तुम्हारे खिलाफ तो सब्र करना चाहिए, सब्र ही इंसान की ताकत है। सब्र आदमी की मजबूती की तरह है। और हमारे प्यारे नबी मे सबसे ज्यादा सब्र है। आगे मौलाना ने एक वाकिया बयान करते हुए कहा कि एक शख्स के गधा , बकरी और मुर्ग मर गए। इस पर उसकी बीवी ने उसको सब्र करने को कहा उसने कहा अल्लाह जो करता है उसमें ही भलाई है। कुछ दिनों बाद डाकूओं का एक गिरोह बस्ती में आकर लूटपाट और मारपीट करने लगा, लेकिन इस आदमी के घर को छोड़ दिया। इस पर बीवी ने कहा देखो अल्लाह ने अच्छा किया आज अगर मेरे जानवर जिंदा होते कहीं मुर्गा बांग दे देता, गधा अपनी आवाज देता या बकरी अपनी आवाज देती तो डाकू हमें पहचान लेते हैं। 
इसलिए माली एतबार से नुकसान पहुंचा। हमारी जान बच गई। 
 सिर्फ अल्लाह रब्बुल इज्जत की ही ज़ात नुकसान पहुंचा सकती है। पैगंबर इस्लाम सल्लाहु अलैहि वसल्लम को मक्का मुकर्रमा में जब लालच दी गई तब मेरे आका ने कहा था कि लोग एक हाथ में सूरज दूसरे हाथ में चांद रख दें तभी मैं इस दावत के काम को नहीं छोडूंगा। मगर अफसोस आज हम (उम्मती) कहां हैं।
इज्तिमा का समापन मौलाना अफजालुर्रहमान द्वारा देश की तरक्की और भाईचारगी की दुआ पर हुआ।
इस दौरान मौलाना जुनैद अहमद, मुफ्ती मुहम्मद शरीफ़, मुफ्ती फैसल हसन हकी, मौलाना अताउल्लाह इमाम कंकर वाली शाही जामा मस्जिद, मौलाना यासीन, मौलाना फहीम अलजामई, कारी इरफान, हाफ़िज़ जावेद, मौलाना तय्यब नदवी, मुईन अहमद मुखिया, हाजी सिराज अहमद मान्यता प्राप्त पत्रकार, मिसबाहुद्दीन, इमादुद्दीन ग़ौरी, मुहम्मद साद, हाजी तुफैल, हाफ़िज़ समीउद्दीन, मो० इकराम हाजी मस्तान सहित सैकड़ों लोग मौजूद रहे।

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