कुरआन कयामत तक हम सब के लिए हिदायतनामा है
मकतब उबई इब्ने कअब रजि० खजूर वाली मस्जिद के जलसा दस्तार बन्दी में बोले उलमा
बिसवां, सीतापुर (सिराज टाइम्स न्यूज़) कुरआन-ए- करीम कयामत तक हम सब के लिए हिदायतनामा है। इसको महफूज करने के लिए अल्लाह पाक ने गैबी इंतजामात फरमाए हैं। कोई भी शख्स इसमे तब्दीली नहीं कर सकता। अल्लाह ने कुरआन-ए-पाक को उस वक्त नाजिल फरमाया जब अरब में अरबियत का गलगला था। वहां के लोगों को अरबी में महारत हासिल थी, इसी गुरुर को तोड़ने के लिए अल्लाह रब्बुल इज्जत ने मुकद्दस किताब कुरआन को अरबी में ही नाजिल फरमाया।
यह बातें प्रख्यात युवा धार्मिक विद्वान मुफ्ती वली उल्लाह मजाहिरी ने कंकर वाली शाही जामा मस्जिद मैदान पर आयोजित मकतब उबई इब्ने कअब रजि० खजूर वाली मस्जिद के दस्तार बन्दी कार्यक्रम मे मुख्य अतिथि के तौर पर कही। उन्होंने विशाल जनसमूह को संबोधित करते हुए कहा कि अल्लाह पाक ने प्यारे नबी हजरत मु० सल०अलै०वस० से फरमाया, आप अहले अरब से कह दीजिए कि जितने भी अरबीदां, शोअरा है। ख्वाह इंसान हो या जिन्नात, सब को एक जगह इकट्ठा कर लो, और उनसे कहे कि कुरआन जैसी मुकद्दस किताब पेश करें।
मुफ्ती वली उल्लाह मजाहिरी ने अपने संबोधन में कहा कि जितने भी अरब के नस्ब महफूज हैं उन सब का सिलसिला प्यारे नबी की जात पर रूकता है। जो भी नस्ब हजरत मु० सल०अलै०वस० से अलग है तो वह महफूज नहीं है। उन्होंने आगे कहा कि उलमा ने लिखा है कि जिस नस्ब में हुजूरे पाक मु० सल०अलै०वस० पैदा हुए उसमें प्यारे नबी से लेकर हजरत आदम तक किसी से जिना का तसव्वुर तक नहीं है।
जलसे की अध्यक्षता कर रहे इमाम ईदगाह बिसवां व काजी शरीयत सीतापुर मौलाना जावेद इकबाल नदवी ने फरमाया कि आज मुसलमान सलाम से बहुत दूर होते जा रहे हैं, सलाम करना सुन्नत है और जवाब देना वाजिब है। कुरआन पाक को छूना, देखना, सुनना और पढ़ना इबादत है। आज हम मोबाइल में कुरआन को पढ़ते हैं जबकि मोबाइल में न जाने कितनी गंदगियां होती हैं। मुफ्ती शरीफ ने कहा कि वह सीने कितने मुबारक हैं जिन्होंने मुकद्दस किताब को महफूज रखा।
मौलाना वकास नदवी ने कहा कि इस्लाम ने ही इंसानों को जिंदगी गुजारने का सही तरीका बतलाया है। जलसे का आगाज कारी नेमतुल्लाह ने तिलावते कलाम पाक से किया। नाते पाक हाफिज जावेद बिसवांनी, तारिक अनवर, मौलाना मसीहुल्लाह तथा हाफिज अब्दुर्रहमान ने पेश किया। मौलाना जियाउद्दीन जिया ने संचालन करते हुए मरहूम शायर राहत इंदौरी के कलाम को पेश किया
"ये अलग बात के ख़ामोश खड़े रहते हैं, फिर भी जो लोग बड़े हैं वो बड़े रहते हैं,
ऐसे दरवेशों से मिलता है हमारा शिजरा, जिनके जूतों में कई ताज पड़े रहते हैं।
जलसे की निगरानी कंकर वाली शाही जामा मस्जिद के इमाम व खतीब मौलाना अताउल्लाह ने की। जलसे की सफलता को देखते हुए अतिथियों द्वारा संयोजक मुहम्मद इकराम अंसारी व उनकी टीम की भूरी-भूरी प्रशंसा की गई। इस दौरान 7 हुफ्फाज को दस्तार बांधी गई। फारिग बच्चों को कुरआन और उपहार दिए गए। इस अवसर पर मुबारकबाद भी दी गई।
अंत में उक्त मकतब के जिम्मेदार हाफिज जावेद बिसवांनी ने आए हुए लोगों के प्रति आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम का समापन मुल्क की तरक्की, खुशहाली व भाईचारगी की दुआ पर हुआ।
इस मौके पर हाफिज एहतिशाम, कारी सगीर, हाफिज इमादुद्दीन, हाजी सिराज अहमद पत्रकार, वहाजुद्दीन ग़ौरी पत्रकार, मौलाना अबुल कलाम, नय्यर शकेब, हाफिज साद, हाफिज तमजीद, हाफिज हसीब, हाफिज फय्याज, हाफिज असलम, हाफिज शादाब, हाफिज फैज, हाफिज जैद, कारी सलमान, हाफिज कामिल, कारी इरफान, माज खां, शहजादे खां, हारुन, अबु सालिम, साद गुड्डू, नोमान मुज्तबा, अजीम, अब्दुर्रहमान, हुजैफा, अब्दुल्लाह, आदिल, शादान आदि मौजूद रहे।
इन बच्चों के बांधी गई पगड़ियां....
मुहम्मद शाहिद, मुहम्मद नवेद, मुहम्मद अकरम, मुहम्मद माज, मुहम्मद शाकिब, मुहम्मद साहिल, मुहम्मद तुफैल के नाम काबिले जिक्र है।